Gold: 28 महीनों की तेजी के बाद सोने में बीते 60 दिनों के भीतर आई 2% की नरमी, क्या गोल्ड में बिग रैली का दौर का खत्म

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गोल्ड ने अब तक जबरदस्त प्रदर्शन किया है। पिछले एक साल में इसकी कीमत में 40% से ज्यादा का उछाल देखा गया है। अक्टूबर 2022 में जहां सोना 1,630 डॉलर प्रति औंस था, वहीं जून 2025 तक इसकी कीमत बढ़कर 3,260 डॉलर तक पहुंच गई। यानी सिर्फ 28 महीनों में निवेशकों को लगभग 100% का रिटर्न मिला। हालांकि, अब इसकी तेजी कुछ थमती नजर आ रही है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है, क्योंकि कोई भी एसेट क्लास लगातार एक दिशा में नहीं बढ़ता। लेकिन अब सवाल उठता है – क्या यह केवल एक अस्थायी ब्रेक है या कोई बड़ा बदलाव सामने आने वाला है?

सोने की जबरदस्त परफॉर्मेंस के पीछे की वजहें

पिछले तीन सालों में दुनिया के बदलते राजनीतिक और आर्थिक हालातों ने सोने की कीमतों को लगातार ऊपर की ओर बढ़ाया है। वैश्विक तनाव, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध, मिडल ईस्ट की अस्थिरता और अमेरिका की आर्थिक परेशानियों ने सेंट्रल बैंकों को बड़े पैमाने पर सोना खरीदने के लिए मजबूर किया। इससे सोने की मांग बढ़ी और निवेशकों का झुकाव भी गोल्ड फंड्स की तरफ हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि कीमतों में जबरदस्त तेजी देखने को मिली।

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दुनियाभर में यह धारणा है कि जब हालात अनिश्चित होते हैं, तब सोना सबसे सुरक्षित निवेश विकल्प बन जाता है। यही वजह है कि हर वैश्विक संकट के समय इसकी मांग में उछाल आता है। 2025 की शुरुआत में भी यह ट्रेंड देखने को मिला, और साल के पहले छह महीनों में सोना करीब 27% तक बढ़ गया। लेकिन हाल के हफ्तों में इसकी तेजी थमती दिखी है। पिछले एक महीने में सोने की कीमत में करीब 0.5% की गिरावट आई है, जिससे निवेशकों के मन में सवाल उठने लगे हैं – क्या सोने की रैली अब थम गई है? क्या पीली धातु ने अपनी चमक खो दी है? चलिए इसे विस्तार से समझते हैं।

क्या सोने के लिए मुश्किल दौर शुरू?

अभी कुछ ही हफ्ते पहले, 22 अप्रैल 2025 को सोना अपने अबतक के रिकॉर्ड स्तर यानी 3,500 डॉलर प्रति औंस (भारत में लगभग 1 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम) के आसपास कारोबार कर रहा था। लेकिन अब इसके रुझानों से संकेत मिल रहे हैं कि सोने की तेज रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ने लगी है।

जून के अंत तक सोने की कीमत घटकर लगभग 3,300 डॉलर प्रति औंस (करीब 96,180 रुपये प्रति 10 ग्राम) पहुंच गई है, यानी यह अपने रिकॉर्ड स्तर से करीब 4% नीचे आ गई है। बाजार में यह गिरावट ऐसे समय आई है जब दुनिया भर में कुछ बड़े जोखिम फिलहाल थमे हुए नजर आ रहे हैं।

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हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ नीति में नरमी का रुख अपनाया है, जिससे अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की आशंका कम हुई है। वहीं, इजराइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव को भी 12 दिन के भीतर सीजफायर से थाम लिया गया है, जो वैश्विक स्थिरता के नजरिए से एक राहतभरी खबर मानी जा रही है।

नतीजतन, फिलहाल निवेशकों को कोई बड़ा भू-राजनीतिक संकट नजर नहीं आ रहा है। शायद यही वजह है कि सोने की कीमतें अब सीमित दायरे में बनी हुई हैं। बीते दो महीनों में सोने ने लगभग -2% का निगेटिव रिटर्न दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ एक अस्थायी ठहराव है या वास्तव में सोने की बुल रन अपने अंतिम चरण में पहुंच रही है? इसका जवाब जानने के लिए आगे पढ़ते हैं।

सोने को सहारा देने वाली ताकतें

कई विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही फिलहाल सोने की कीमतों में थोड़ी नरमी आई हो, लेकिन यह बाज़ार से बाहर नहीं हुआ है। इसकी सबसे बड़ी वजह है – सेंट्रल बैंकों की लगातार खरीद। पिछले कुछ सालों में जब भी वैश्विक अनिश्चितता बढ़ी, सेंट्रल बैंकों ने बड़े पैमाने पर सोना खरीदा और यही ट्रेंड अभी भी जारी है। यही कारण है कि दुनिया के कई प्रमुख बैंक अगले साल सोने की कीमतों में और इज़ाफा होने की संभावना जता रहे हैं।

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले 12 महीनों में करीब 43% सेंट्रल बैंक अपनी गोल्ड होल्डिंग को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। इसका मतलब है कि सोने की मांग अभी और तेज़ होने वाली है, जिससे इसकी कीमतों को आगे भी मजबूती मिल सकती है।

अब अगर ब्याज दरों की बात करें, तो सोने की कीमतों से इनका सीधा उलटा संबंध होता है। जब ब्याज दरों में कटौती होती है, तो निवेशक ऐसे विकल्पों की ओर झुकते हैं जो निश्चित रिटर्न नहीं देते – जैसे कि सोना। ऐसे समय में सोने की मांग बढ़ जाती है और यही मांग इसकी कीमतों को मजबूती देती है।

अमेरिका का फेडरल बैंक दिसंबर 2024 से ब्याज दरों को 4.25%-4.5% के स्तर पर बनाए हुए है, लेकिन अब रेट कट की चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं। अगर टैरिफ के जरिए महंगाई काबू में रहती है, तो सितंबर 2025 से ब्याज दरों में कटौती की शुरुआत हो सकती है और आने वाले 2-3 वर्षों में इनमें 2% से 3% तक की गिरावट संभव है। आमतौर पर हर 1% की ब्याज दर कटौती सोने के लिए फायदेमंद साबित होती है – बशर्ते बाकी परिस्थितियां स्थिर बनी रहें।

अब बात करें डॉलर की. दुनिया में जब आर्थिक संकट आता है, तो सोना चमकता है. और इस वक्त अमेरिका का डॉलर भी संकट में है.

डॉलर इंडेक्स (जो अमेरिकी डॉलर की ताकत को अन्य देशों की मुद्राओं के मुकाबले मापता है) इस साल 100 से नीचे चला गया है – जो कई सालों बाद हुआ है – और अब तक इसमें 10% से ज़्यादा की गिरावट आ चुकी है.

लेकिन डॉलर गिरने से सोने को फायदा क्यों होता है? क्योंकि जब डॉलर कमजोर होता है, तो इसका मतलब है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है. ऐसे में निवेशक डॉलर छोड़कर सोने में पैसा लगाते हैं, क्योंकि सोना संकट के समय सबसे भरोसेमंद एसेट होता है. उन्हें न तो अमेरिकी बॉन्ड चाहिए और न ही डॉलर में कोई निवेश.

जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर से भरोसा डगमगाने लगता है, तो निवेशक केवल सोने पर भरोसा करते हैं. बैंक ऑफ अमेरिका (BofA) का मानना है कि अगले साल तक सोना 4,000 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकता है – यानी अभी के मुकाबले लगभग 20% और बढ़ सकता है.

लेकिन BofA इतना पॉज़िटिव क्यों है? वो इसका कारण युद्ध नहीं, बल्कि ट्रंप का नया बिग एंड ब्यूटीफुल (Big and Beautiful) बिल बताते हैं, जो अमेरिका की आर्थिक हालत और कमजोर कर सकता है, जिससे डॉलर पर और दबाव बढ़ेगा – और सोना और मजबूत होगा.

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क्या अब सोने की कहानी खत्म हो रही है?

अभी दुनिया पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हुई है. इज़राइल-ईरान संघर्ष का अंत भले ही सीज़फायर से हो गया हो, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध अभी भी जारी है. कुल मिलाकर, दुनिया की राजनीतिक स्थिति अस्थिर बनी हुई है.

भले ही अभी टैरिफ, युद्ध और आर्थिक मंदी की बातें थोड़ी शांत दिख रही हों, लेकिन सोने को नजरअंदाज करना जोखिम भरा हो सकता है. बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी डॉलर और बॉन्ड्स में आगे और कमजोरी आ सकती है. साथ ही, अमेरिका में मंदी का खतरा भी अभी टला नहीं है.

अब क्या करें?

बाजार में भले ही अभी सोने की तेजी कुछ धीमी पड़ी हो, लेकिन यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि गोल्ड रैली पूरी तरह खत्म हो गई है. आने वाले समय में इसमें हल्की कमजोरी, मुनाफावसूली या कुछ हद तक गिरावट देखने को मिल सकती है. सिटीबैंक जैसे बड़े संस्थान भी मानते हैं कि यह गिरावट थोड़ी तेज हो सकती है.

लेकिन लंबे समय के निवेशकों के लिए यह एक सुनहरा मौका हो सकता है – धीरे-धीरे और सोना जोड़ने का.

हालांकि एक बात ज़रूर ध्यान रखें – सोने में पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी आ चुकी है, इसलिए किसी भी बड़ी गिरावट की संभावना को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इसलिए निवेश से पहले साफ रणनीति बनाना ज़रूरी है – पोर्टफोलियो का सिर्फ 5–10% हिस्सा ही गोल्ड को दें, इससे ज्यादा नहीं.

और याद रखिए जैसे ही दुनिया फिर से सामान्य हो जाएगी – जब युद्ध खत्म होंगे और वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं स्थिर होंगी, तब समझ लीजिए कि सोने की तेज़ी भी धीमी पड़ने लगेगी. लेकिन तब तक, जब तक सोना चमक रहा है – उसका पूरा लाभ उठाइए.

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